बुधवार, 13 अप्रैल 2011

sach....samay kitna badal gaya hai
kabhi lagta tha ki ye poori duniya
meri muthhi me hain
fir laga ki duniya ret ki manind
band mutthi se fisal rahi hai

per shayed ek rok aa gai hai
fir se kuchh hausle buland hone lage hain
fir se nai roshni dikhne lagi hai

kya karun maa.....tumne hi to kaha tha....
jindagi jee bhar ke jiyo....
so , jee rahin hoon........


jee bhar ke..


गुरुवार, 23 जुलाई 2009

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तमाम उम्र यूँ ही काट दी .......
ये ही सोचते रहे कि जो हो रहा है ...
अच्छा ही हो रहा है.....
और जो होगा वो भी अच्छा ही होगा.....
क्या ऐसा ही हुआ?
क्या ऐसा ही होता है?
नहीं न?
फ़िर क्यों हम दिल को तसल्ली देते हैं?
जब भी ये महसूस करने लगे कि
जिंदगी मेरे लिए बहुत खूबसुरत है
तब उसने अपना अनचाहा रूप दिखा दिया।
क्यों?
कोई जवाब नहीं॥
बस जिंदगी है......
जीते रहो.....

मंगलवार, 21 जुलाई 2009

maa....

माँ को समर्पित ...............
मुनव्वर राणा साब के चंद शेर ..............

लबो पे उसकी कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे खफा नहीं होती।

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ जब बहुत गुस्से में होती है रो देती है

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है।

मुझे ख़बर नहीं जन्नत बड़ी की माँ लेकिन
बुजुर्ग कहते हैं जन्नत बशर के नीचे हैं

समझो की सिर्फ़ जिस्म है और जा नही रही
वो शख्स जो की जिन्दा है और माँ नहीं रही ..